आरती बेहद संवेदनशील स्वभाव की महिला है, छोटी-छोटी बातों पर चिंताग्रस्त हो जाना उसकी आदत में शुमार है. अगर उसके परिवार को भी किसी परेशानी का सामना करना पड़ता है तो वह इसके लिए भी खुद को ही दोषी मानती है. अब तो हालात ऐसे बन गए हैं कि वह ना तो किसी से बात करती है, और ना ही कहीं आती-जाती है. दोस्तों से मिलना तो उसने पूरी तरह बंद कर दिया है. वह नहीं चाहती कि उसके किसी भी बर्ताव से कोई भी परेशान हो इसीलिए अपना अधिकांश समय वह अकेला बिताना ही पसंद करती है. अपराधबोध की भावना उस पर हावी होने लगी है. डॉक्टरों का मानना है कि आरती का ऐसा स्वभाव उसे मानसिक तौर पर तो प्रताडित कर ही रहा है, साथ ही वह भावनात्मक रूप से भी वह आहत हो रही है.
ऐसे ही कुछ हालात कॉरपोरेट क्षेत्र में काम करने वाले प्रियंका के भी हैं. उसका अधिकांश समय काम में ही व्यतीत हो जाता है. जिसके परिणामस्वरूप वह ना तो अपने पति के लिए समय निकाल पाती है, और ना ही अपने बच्चों के जीवन में होने वाली महत्वपूर्ण घटनाओं में खुद को शामिल कर पाती है. ना चाहते हुए भी उसे अपने व्यक्तिगत जीवन को पूरी तरह नजरअंदाज करना पड़ रहा है. उसका पति जो कि स्वयं एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में जॉब करता है, वह भी उसकी परेशानी को समझने की कोशिश नहीं कर रहा है. यहॉ तक कि हालात ऐसे हो गए हैं कि उसके बच्चे भी अब उससे दूरी बनाने लगे हैं. वह ना तो किसी से कुछ कह पाती है और ना ही अपने प्रति होते ऐसे बर्ताव को सहन कर पा रही है. वह इन सब के लिए अब खुद को ही दोषी मानने लगी है. अगर उसके परिवार को भी किसी समस्या का सामना करना पड़ता है तो वह उसके लिए भी खुद को शर्मिंदा महसूस करती है. परिणामस्वरूप कार्यक्षेत्र में भी उसका आत्मविश्वास कमजोर पड़ता जा रहा है.
एक अध्ययन के अनुसार लगभग नब्बे प्रतिशत महिलाओं की स्थिति ऐसी ही है. वह हर घटना को खुद से संबंधित कर लेती हैं. हर छोटी-छोटी बात पर खुद को दोषी मानने की अपनी आदत के चलते समाज में उनकी छवि ही ऐसी बन गई है कि वह हमेशा गलती ही करती हैं. जबकि पुरुष इस संदर्भ में काफी चालाक होते हैं. जहां महिलाएं किसी और की गलती के लिए भी खुद को ही दोष देती हैं, वहीं पुरुष अपने द्वारा की हुई भूल से भी हमेशा बचने की सोचते हैं. वह हमेशा दूसरों को ही दोष देने की कोशिश करते हैं.
अगर आप भी परिवार को पर्याप्त समय ना दे पाने या फिर व्यक्तिगत संबंधों में खटास पैदा होने की वजह खुद को ही मान रहीहैं, तो ध्यान रखें ऐसी मनोवृत्ति आपको मानसिक रूप से तो परेशान करेगी ही लेकिन साथ ही साथ आपके सकारात्मक दृष्टिकोण को भी पूरी तरह समाप्त कर सकती है.
निम्नलिखित सुझावों पर अमल करते हुए आप अपने प्रति ऐसे नकारात्मक विचारों से खुद को बचा सकती हैं:
चाहे ना चाहे गलतियां हम सभी से होती हैं. पर इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि आप हर समय खुद को ही दोषी मानती रहें. आपको यह समझना होगा कि खुद पर भरोसा और परिस्थितियों के प्रति आपका सकारात्मक दृष्टिकोण जहां परेशानियों का डटकर सामना करने के लिए प्रेरित करता है, वहीं आपका परिवार आपको भावनात्मक रूप से कमजोर नहीं पड़ने देता.
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