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वैवाहिक जीवन में आपसी नहीं पारिवारिक संबंध ज्यादा मायने रखते हैं

happy familyमहिलाओं के विषय में हम सभी यह जानते हैं कि वह पुरुषों की अपेक्षा अधिक भावुक होती हैं. संबंधों में जरा सी भी लापरवाही वह वहन नहीं कर सकतीं. कोई भी महिला यह नहीं चाहती कि जिन संबंधों को वह अपने जीवन में सबसे ज्यादा अहमियत देती है, उनमें उसकी किसी गलती के कारण खटास पैदा हो. यही वजह है कि वह अपने सभी संबंधों के प्रति संजीदा दृष्टिकोण रखती है.

महिला हो या पुरुष, वैवाहिक संबंध सभी के जीवन में बेहद अहम स्थान रखते हैं. लेकिन हम इस बात को कतई नकार नहीं सकते कि महिलाओं की सहनशीलता ही वैवाहिक संबंध को स्थायित्व प्रदान करती है. ऐसा भी नहीं है कि पुरुष अपनी जिम्मेदारियों को नहीं समझते. इसके विपरीत तथ्य साफ प्रदर्शित करते हैं कि विवाह के पश्चात पुरुष अपेक्षाकृत अधिक परिपक्व हो जाते है लेकिन फिर भी वह शारीरिक आकर्षण को ही अपनी प्राथमिकताओं में गिनते हैं. वहीं दूसरी ओर महिलाओं के लिए शारीरिक संबंध पारिवारिक उत्तरदायित्वों के सामने गौण पड़ जाते हैं.


एक नए अध्ययन के अनुसार यह बात प्रमाणित हुई है कि जब महिलाओं के ऊपर परिवार की जिम्मेदारियां आती हैं, तो वह अपने वैवाहिक जीवन और पति के साथ को भी इनके सामने महत्व नहीं देतीं. शारीरिक संबंध जो वैवाहिक जीवन को अधिक मजबूती प्रदान करता है, बच्चों और परिवार के प्रति अपनी जिम्मेदारियां निभाते हुए महिलाएं इस ओर भी ध्यान नहीं देती.


अफ्रीका के जॉन हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल के शोधकर्ताओं ने यह प्रमाणित किया है कि महिलाओं की परिवार के प्रति जिम्मेदारियां बढ़ने के साथ उनका शारीरिक संबंधों के प्रति रुझान समाप्त होने लगता है.


इस स्टडी की मुख्य शोधकर्ता मिशेल हिंडिन का कहना है कि संबंध स्थापित ना करना महिलाओं का अपना निर्णय होता है, हालांकि कई बार पति-पत्नी दोनों ही अपनी जिम्मेदारियों के चलते यह निर्णय लेते हैं. लेकिन मुख्य तौर पर महिलाएं, जिनके ऊपर घरेलू जिम्मेदारियां पुरुषों से ज्यादा होती हैं, ही स्वयं शारीरिक संबंध बनाने या फिर पति के साथ रूमानी पल बिताने के प्रति उदासीन रहती हैं.

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इस सर्वेक्षण को अगर हम भारतीय पृष्ठभूमि में देखें तो यहां भी हालात ज्यादा भिन्न नहीं हैं. प्राय: देखा जाता है कि एक निश्चित समय के बाद पति-पत्नी एक-दूसरे से ज्यादा अहमियत परिवार और बच्चों को देने लगते हैं. परिवार के भीतर उनकी स्थिति कैसी है यह उनके ऐसे व्यवहार को और अधिक बढ़ावा देता है. निश्चित तौर पर उन वैवाहिक जोड़ों पर जिम्मेदारियों का बोझ ज्यादा पड़ेगा जो संयुक्त परिवार में रहते हैं. ऐसे में घर के सभी सदस्यों की देख-रेख करना, उनकी जरूरतों का ख्याल रखना उनका सबसे पहला दायित्व बन जाता है.


भले ही इन सब जिम्मेदारियों के चलते पति-पत्नी आपस में समय ना बिता पाएं लेकिन अपने बच्चों को वह पूरा समय देते हैं. इसके पीछे कारण यह नहीं है कि वह दोनों एक-दूसरे के साथ से ऊब चुके हैं. बल्कि उन दोनों के बीच इतनी समझ विकसित हो चुकी होती है कि अगर वह साथ समय ना भी बिता पाएं तो इससे उनके संबंध को कोई नुकसान नहीं होता. पत्नी हो या पति दोनों ही अपनी पारिवारिक जरूरतों को पूरा करने की कोशिश करते हैं, जिसमें उनका अधिकांश समय व्यतीत हो जाता है क्योंकि उनके लिए शारीरिक संबंध नहीं बल्कि परिवार की खुशी मायने रखती है.

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