पुरुषों के विषय में अकसर यह माना जाता है कि वह विवाह जैसे बंधन में बंधना नहीं चाहते. वह एक स्वच्छंद पक्षी की भांति जीवन जीने में ज्यादा यकीन करते हैं इसीलिए उनके लिए कुंवारा रहना ही पसंद होता है. पुरुष जानते हैं कि विवाह के पश्चात उन पर कई ऐसी पारिवारिक जिम्मेदारियां आ जाएंगी जिन्हें चाहे अनचाहे उन्हें निभाना ही पड़ेगा. इन्हीं जिम्मेदारियों के चलते वह अपने लिए भी समय नहीं निकाल पाएंगे. यही वजह है कि लगभग सभी पुरुष विवाह के नाम पर अपनी भौंहे सिकोड़ने लगते हैं.
अगर आप भी कुंवारेपन को ही जीवन का सबसे बेहतरीन हिस्सा मानते हैं और जैसे-तैसे वैवाहिक जिम्मेदारियों से बचना चाहते हैं तो यह आपके स्वास्थ्य के लिए नुकसान देह हो सकता है.
संभवत: अब आप यह सोच रहे होंगे कि शादी करना या ना करना स्वास्थ्य को किस प्रकार प्रभावित कर सकता है ?
एक नए अध्ययन के अनुसार यह बात सामने आई है कि वे लोग जो उत्तरदायित्वविहीन रहने या फिर किसी अन्य कारणवश विवाह नहीं करते वह कैंसर जैसी गंभीर और लाइलाज बीमारी से अपेक्षाकृत जल्दी घिर जाते हैं. यही नहीं उनकी कैंसर से मरने की संभावना भी दोगुनी हो जाती है.
बीते चालीस वर्षों में कैंसर से मरने वाले लोगों के आंकड़े और उनसे जुड़ी सूचनाओं के आधार पर लंदन स्थित ओस्लो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने यह प्रमाणित किया है कि वे लोग जो एक खुशहाल वैवाहिक जीवन नहीं जी पाते, उनकी फेफड़े, प्रोस्टेट जैसे तेरह प्रकार के कैंसर से मरने की संभावना अन्य लोगों की तुलना में कहीं ज्यादा बढ़ जाती है.
डेली मेल में प्रकाशित हुई इस रिपोर्ट के अनुसार अनुसंधानकर्ताओं ने यह प्रमाणित किया है कि कैंसर से होने वाली मौतों का स्तर हर दशक में बढ़ता है जिनमें मुख्यत: 70 वर्ष की आयु वाले अविवाहित पुरुष होते हैं.
उपरोक्त अध्ययन भले ही विदेशी लोगों को केन्द्र में रखकर किया गया हो, लेकिन भारतीय परिवेश में भी इसके नतीजों को मान्यता दी जा सकती है. यहां भी हम ऐसे हालातों को देख सकते हैं जहां अकेलेपन की मार झेल रहा व्यक्ति अपने जीवन की तन्हाई को और सहन नहीं कर पाने के कारण अवसाद में चला जाता है. मानसिक रूप से वह इस कदर आहत रहता है कि उसे अपने आस-पास की चीजें भी परेशान करने लगती हैं और एक समय बाद वह सब से कट जाता है.
इससे पहले भी हम कई ऐसे सर्वेक्षणों के विषय में पढ़ चुके हैं जिनके अनुसार अकेले जीवन व्यतीत करने वाले लोग शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं रह पाते. यहां तक की एकाकी जीवन व्यतीत करने वाले लोग एक खुशहाल पारिवारिक जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्ति की तुलना में जल्दी ही बीमार रहना शुरू कर देते हैं. समय के साथ-साथ उनके स्वास्थ्य में भी लगातार गिरावट आती रहती है. परिणामस्वरूप वह अकेलापन बर्दाश्त करते-करते असमय मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं.
परिवार ना सिर्फ पति-पत्नी के लिए जरूरी होता है बल्कि बच्चों के लिए भी बहुत ज्यादा अहमियत रखता है. प्राय: देखा जाता है कि वे बच्चे जिन्हें अच्छा पारिवारिक वातावरण मिलता है वह स्वभाव से विनम्र और बेहतर मानसिकता वाले होते हैं.
भारतीय परिवेश में पारिवारिक जीवन और उससे जुड़ी जिम्मेदारियों को ही व्यक्ति की प्राथमिकता समझा जाता है जिसकी शुरूआत उसके विवाह से होती है. परिवार जहां व्यक्ति को संपूर्णता और पारस्परिक भावनाओं का अहसास करवाता है वहीं परिवार की सबसे प्रमुख विशेषता हर सुख-दुख में एक-दूसरे के साथ रहना है. यही वजह है कि पारिवार के साथ रहने वाले लोग स्वभाव से खुशमिजाज और संजीदा होते हैं. वह अपने परिवार के साथ को लेकर हमेशा आश्वस्त रहते हैं इसीलिए उनके लिए कोई भी समस्या बड़ी नहीं होती, वहीं एकाकी जीवन में अकेलापन ही सबसे बड़ी परेशानी बनी रहती है.
उपरोक्त विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि विवाह के जिस लड्डू के विषय में पुरुष हमेशा असंमजस में ही घिरे रहते हैं, वह उनके लिए एक ऐसी जड़ी-बूटी है जिसे खाना उनके स्वास्थ्य के लिए तो अच्छा है ही साथ ही उनके व्यक्तिगत जीवन के लिए भी एक फायदे का सौदा है.
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