जब भी हमें किसी व्यक्ति द्वारा भावनात्मक चोट पहुंचती है या फिर हमें ऐसा लगने लगता है कि अब हमारे हित को अनदेखा कर निर्णय लिया या काम किया जा रहा है तो हम अपना रोष प्रकट करने के लिए आंसुओं या फिर क्रोध का सहारा लेते हैं. लेकिन एक नए अध्ययन के अनुसार हम यह सब ना तो खुद को सांत्वना देने के लिए करते हैं और ना ही अपना दुख जाहिर करने के लिए, इसके विपरीत हम इस उद्देश्य से करते हैं ताकि दूसरा व्यक्ति हमारी बात मान कर हमारे साथ सहयोग करे.
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के विकासवादी मनोवैज्ञानिक जॉन टूबी का कहना है कि हो सकता है आप किसी बात से आहत होकर दुखी या क्रोधित हों लेकिन ऐसा करने के पीछी आपका मंतव्य लोगों का ध्यान आकर्षित करना और अपनी बात मनवाना ही होता है. उनका कहना है कि क्रोध करने के पीछे मौलिक उद्देश्य झगड़ा करना नहीं बल्कि किसी भी तरह दूसरे व्यक्ति को अपने साथ सहयोग करने के लिए राजी करना है.
टूबी के सहयोगी जुलियन लिम का कहना है कि आप किसी के प्रति कृतज्ञता का भाव तभी रखते हैं जब आपको यह लगे कि आपने जितना सोचा था दूसरे व्यक्ति ने उससे ज्यादा किया है. अगर किसी के द्वारा आपका थोड़ा-बहुत फायदा होता है तो आप उसे महत्व ही नहीं देते.
वहीं एक दूसरा अध्ययन यह प्रमाणित करता है कि मजबूत कद-काठी वाले पुरुष और आकर्षक महिलाएं ही अपनी बात मनवाने के लिए क्रोध या आंसुओं का सहारा लेते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा कर वह जल्दी और प्रभावी तरीके से अपनी बात मनवाने में सफल हो सकते हैं.
हालांकि बहुत से लोग इन नतीजों और स्थापनाओं को सही नहीं मानते. न्यू साइंटिस्ट के अनुसार मनोवैज्ञानिक मिशैल लिवाइस का कहना है कि इन स्थापनाओं के पीछे कोई मजबूत आधार या सबूत नहीं हैं इसीलिए इसे स्वीकार किया जाना मुश्किल है.
अगर हम मानव स्वभाव की बात करें तो प्राय: देखा जाता है कि लोग अपनी बात को सही साबित करने या उसे मनवाने के लिए रोना या फिर चिल्लाना शुरू कर देते हैं. ऐसे में यह बात कोई खास मायने नहीं रखती कि वे किस देश के नागरिक हैं और कैसे समाज में रहते हैं. उनका उद्देश्य सिर्फ अपनी बात मनवाना ही होता है.
लेकिन अगर आप यह सोच लें कि सभी लोग बस इसीलिए रोते या क्रोधित होते हैं तो यह पूर्णत: गलत होगा. अगर हमें किसी कारण दुख होता है तो ऐसी भावना जो हमें परेशान और नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है उसे आंसुओं के रूप में बाहर निकालना बहुत जरूरी हो जाता है. ऐसे हालातों में रोने का अर्थ यह कतई नहीं होता कि हम अपनी बात को मनवाने के लिए ऐसा कर रहे हैं. जब परिस्थितियां पहले ही अपने हाथ से निकल चुकी होती हैं तो बात मनवाने जैसी चीजें कोई महत्व ही नहीं रखतीं. वहीं दूसरी ओर क्रोध भी मानव के विभिन्न भावों में से एक है जिसका प्रदर्शन जरूरत और परिस्थितियों के अनुसार ही किया जाता है और यही बेहतर है. क्रोध एक ऐसा भाव है जिसे अगर बिना सोचे-समझे या प्रतिकूल परिस्थितियों में सार्वजनिक किया जाए तो यह अन्य भावों की तुलना में कहीं ज्यादा विनाशकारी सिद्ध हो सकता है.
Read Comments