प्यार में धोखा और विश्वासघात मिलना कोई नई बात नहीं है. हम इसके लिए आधुनिकता को दोष नहीं दे सकते, क्योंकि हमारा इतिहास भी यह साफ बयां करता है कि जरूरत पड़ने पर अपने प्रेमी/प्रेमिका के साथ धोखा करना हमेशा से ही मनुष्य का स्वभाव रहा है. लेकिन अगर आप यह सोचते हैं कि सभी लोग प्रेम संबंध में समान रूप से धोखा देते हैं, कोई भी कभी भी किसी से सच्चा प्रेम कर ही नहीं सकता तो यह बात बिल्कुल सही नहीं है.
भले ही अपनी जरूरत के अनुसार प्रेमी-प्रेमिका की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करना आज के समय की पहचान बन गई हो लेकिन फिर भी हम यह बात नकार नहीं सकते कि आज भी बहुत से लोग प्रेमी के लिए कुछ भी कर गुजरने की हिम्मत रखते हैं. अपने प्यार को पाने के लिए वे किसी भी बाधा को पार करने से पीछे नहीं हटते. लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि जब प्रेम भावनाएं सभी के अंदर होती हैं, सभी अपने प्रेमी को खुश देखना चाहते हैं, तो ऐसा क्यों होता है कि कुछ लोग तो अपने प्यार के लिए जान तक दे देते हैं और वहीं कुछ अपने आगे किसी दूसरे की भावनाओं को महत्व ही नहीं देते?
मानव मस्तिष्क में उठने वाले इन सवालों का जवाब भावनात्मक रूप से मिले ना मिले लेकिन विज्ञान ने ऐसे सवालों का हल ढूंढ निकाला है.
एक नए अध्ययन के अनुसार साथी की तस्वीर देखने के बाद प्रेमी जो भी महसूस करता है, वही भाव उसकी प्रतिबद्धता या फिर धोखा देने की प्रवृत्ति निर्धारित करते हैं.
न्यूयॉर्क स्थित स्टोनी ब्रुक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अपने एक अध्ययन द्वारा यह प्रमाणित किया है कि वे प्रेमी जोड़े जो बहुत लंबे समय से एक-दूसरे के साथ रह रहे हैं उनके धोखा देने की संभावना, नए जोड़ों की अपेक्षा बहुत कम होती है.
इस अध्ययन के अंतर्गत पहले उन लोगों के मस्तिष्क को स्कैन किया गया जो काफी लंबे समय से एक-दूसरे के साथ रह रहे थे. उन्हें अपने साथी की और उससे मिलते-जुलते चेहरों की तस्वीर दिखाई गई और यह निरीक्षण किया गया कि साथी के चेहरे को देखकर वह कुछ विशेष महसूस करते हैं या नहीं. यही समान अध्ययन उन जोड़ों के ऊपर भी किया गया जिनके प्रेम संबंध की शुरूआत अभी-अभी हुई है, लेकिन उनके मस्तिष्क में चिंता और आक्रोश जैसे भाव ज्यादा उत्पन्न हुए. इसके अलावा अन्य लोगों की तस्वीर देखकर भी वह आकर्षित हुए.
वैज्ञानिकों ने पाया कि दीर्घ-कालिक संबंध का निर्वाह कर रहे लोग अपने साथी के चेहरे को देखकर अन्य प्रेमी जोड़ों की अपेक्षा अधिक उत्साहित और भावुक हो जाते हैं. उनके मस्तिष्क का वह हिस्सा अधिक सक्रिय और संतुष्ट हो जाता है जो भूख, प्यास और नशे जैसी इच्छाओं के लिए उत्तरदायी होता है.
इस स्टडी के मुख्य शोधकर्ता आर्थर अरोन के अनुसार दीर्घकालिक प्रेम भले ही विवाद का विषय रहे हों लेकिन जब सच्चे प्रेम की बात आती है तो हर सुख-दुख में साथ रहने वाला व्यक्ति, जो सिर्फ आपसे शारीरिक आकर्षण ही नहीं बल्कि भावनात्मक प्रेम भी करता है, निश्चित रूप से सच्चा प्रेमी होता है. यह अध्ययन उन लोगों के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकता है जो अपने प्रेमी से विवाह करने वाले हैं या अपने इस विषय में सोच रहे हैं.
इस नए रिसर्च के बाद यह बात तो सामने आ गई है कि थोड़े समय साथ रहने के बाद हम जो अपने साथी के लिए महसूस करते हैं वह एक समर्पित संबंध नहीं बल्कि आकर्षण ही होता है.
भले ही यह शोध एक विदेशी संस्थान द्वारा संपन्न किया गया है लेकिन फिर भी प्रेम की परिभाषा दीर्घकालिक संबंध द्वारा ही गढ़ी जाती है. यह बात पूर्णत: सही है और भारतीय परिवेश पर भी समान रूप से लागू की जा सकती है. हमारे युवा जो एक थोड़े समय साथ रहने और आकर्षण को प्रेम समझ लेते हैं, वह प्रेम नहीं सिर्फ शारीरिक आकर्षण है जो बहुत ही जल्द समाप्त हो जाता है. प्रेम एक ऐसा संबंध है जो जितना ज्यादा गहरा और परिपक्व हो उतना ही स्थायी और समर्पित होता है.
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