छुपा लेते हैं. क्या आप जानते हैं कि एक करीबी रिश्ते और करीबी दोस्ती में क्या अंतर है. हममें से बहुत से लोग यह जानते हैं कि जब दोस्ती में नजदीक़ियां बढ़ जाती हैं तो वह एक रिश्ते की शक्ल ले लेती हैं. परन्तु सत्य कुछ अलग है.
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ज़रा सोचिए वह बातें जो आप अपने दोस्तों से करते हैं उस समय क्या आप शरमाते हैं? शायद नहीं! तब तो आप अपनी विफलताओं और कमियों के बारे में खुल के बात करते हैं, यहां तक कि आपको अपने दोस्त के सामने अपने दुःख-दर्द व्यक्त करने से भी परहेज नहीं होता. वास्तव में दोस्ती में आप अपने दोस्त के बारे में सब कुछ जानना चाहते हैं और बदले में वह भी आपके बारे में सब कुछ जानता है.
परन्तु क्या एक रिश्ते में ऐसा होता है? पहले जरा जानवरों के बारे में सोचिए. वह भी तो अपने साथी के साथ अपना सबसे अच्छा बर्ताव करते हैं. लेकिन रिश्ते में हम मनुष्य अपने साथी से बहुत कुछ छुपाते हैं. रिश्ते में हम अपने साथी को अपनी विफलताओं और कमियों के बारे में बताना नहीं चाहते. प्यार में हमारी कोशिश अपने साथी को अपनी तरफ़ प्रभावित करने की होती है. दोस्ती और रिश्ते के बीच यह अंतर बहुत गहरा है.
रिश्ते के अंतर्गत हम अपने सभी कदम फूंक-फूंक कर रखते हैं लेकिन दोस्ती में हम अपने दोस्त से खुले होते हैं. वास्तव में दोस्ती में हम बच्चे बन जाते हैं. लेकिन जब बात रिश्तों की आती है तो हमारा व्यवहार बड़ों जैसा हो जाता है.
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रिश्तों के बारे में एक बात कही जाती है कि अगर हम रिश्तों को एक चारदिवारी के अंदर रखते हैं और उसे दोस्ती में नहीं बदलने देते हैं तो वह रिश्ता बहुत समय तक चलता है. और इसके साथ-साथ रिश्तों को कायम रखने के लिए कभी ना कभी किसी ना किसी को झुकना पड़ता है, परन्तु दोस्ती में सदैव दोनों पक्ष बराबर रहते हैं.
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