कुछ ही दिनों में नताशा अपने प्रेमी रोहित के साथ विवाह करने जा रही है. नाताशा और राहुल का संबंध 4 साल पुराना है और अब वह परिवार वालों की मर्जी के साथ अपने संबंध की अगली मंजिल विवाह की ओर कदम बढ़ा रही है. दोनों एक दूसरे को बहुत प्रेम करते हैं और एक-दूसरे का बहुत ध्यान रखते हैं. आपसी निर्णय से दोनों ने गोवा को हनीमून डेस्टिनेशन के रूप में चयनित किया है और दोनों ही अब इस प्लानिंग में लग गए है कि कैसे अपने हनीमून को खूबसूरत और यादगार बनाया जाए.
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ऐसा ही कुछ संजीव के भी साथ है. वह परंपरागत विवाहशैली के द्वारा रितु से विवाह करने जा रहा है . वह रितु को उतनी अच्छी तरह से जानता तो नहीं है लेकिन उसे उम्मीद है कि जब वह विवाह के बाद हनीमून पर जाएंगे तो उन्हें एक-दूसरे के साथ बिताने के लिए एक अच्छा मौका तो मिलेगा ही साथ ही आपसी समझ विकसित भी हो जाएगी.
भले ही लव मैरेज हो या अरेंज्ड लेकिन अगर इनकी तरह आप भी अपने हनीमून को जीवन का सबसे यादगार सफर बनाने की तैयारी कर रहे हैं तो हम आपको बता दे कि हनीमून उतना हसीन भी नहीं होता जितना आप अपेक्षा करते हैं. विशेषज्ञों की माने तो विवाह के पहले साल में दंपत्ति कभी खुश नहीं रहते. अब फिर चाहे वे हनीमून पर जाए या फिर कही और उनके बीच की परेशानियां समाप्त नहीं होती.
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इसका अर्थ स्पष्ट है कि हनीमून पीरियड को सुनहरा पड़ाव मानने वाले लोगों को अपनी मानसिकता पर दोबारा विचार करने की जरूरत है.
देकिन विश्वविद्यालय (ऑस्ट्रेलिय) के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में यह प्रमाणित किया है कि वे दंपत्ति जो एक-दूसरे के साथ 40 वर्ष से अधिक व्यतीत कर चुके हैं वह अन्य दंपत्तियों की अपेक्षा अधिक खुश रहते हैं.
इस अध्ययन में 2000 विवाहित जोड़ों को शामिल कर उनसे कुछ सवाल पूछे गए. उनके इन्हीं जवाबों के आधार पर उन्हें 0-100 अंक दिए गए. इन्हीं अंखों के आधार पर रिसर्चर्स ने यह स्थापित किया है कि विवाह के पहले एक साल में विवाहित दंपत्ति को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता. वह तालमेल बैठाने में भी हो सकती है और परिवार वालों के साथ भी.
इस अध्ययन में शामिल ज्यादातर लोगों को औसतन 75 अंक मिले थे. वहीं जिनकी अभी-अभी शादी हुई है या विवाह का पहला साल था उन्हें औसतन 73.9 अंक दिए गए. वहीं उन दंपत्तियों को जिन्होंने एक साल 4 दशक से भी ज्यादा समय गुजारा है उन्हें औसतन 80 अंक हासिल हुए.
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इस शोध की मुख्य शोधकर्ता मेलिसा विनबर्ग के अनुसार यह नतीजें अप्रत्याशित थे क्योंकि प्राय: सभी यह मानते हैं कि विवाह का पहला एक साल खुशी-खुशी बीतता है. जबकि असल में अधिक समय साथ बिताने वाले कपल ज्यादा संतुष्ट और खुश रहते हैं. विनबर्ग के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के लिए शादी का दिन बहुत खास होता है लेकिन जैसे-जैसे साथ रहने लगते हैं उनमें परेशानियां बढ़्ने लगती हैं.
एक अन्य अध्ययन में भी यह प्रमाणित किया जा चुक है कि दंपत्ति विवाह के दूसरे-तीसरे साल में ही खुश रहना शुरु करते हैं. शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि विवाहित लोग विशेषकर महिलाएं अवविवाहित, तलाकशुदा आदि लोगों से अधिक खुश रहते हैं.
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उपरोक्त अध्ययन को अगर भारतीय परिदृश्य के अनुरूप देखा जाए तो हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि भले ही लव मैरेज हो या फिर अरेंज्ड लेकिन विवाह के बाद शुरूआती समय में दंपत्ति को आपसी समझ विकसित करने और सामंजस्य बैठाने में समय लगता है. प्रेमी-प्रेमिका के संबंध से इतर जब पति-पत्नी के तौर पर रहने लगते हैं तो उन्हें कुछ परेशानियों का सामना तो करना ही पड़ता है. वहीं दूसरी ओर भारतीय समाज में परंपागत विवाह शैली की प्रधानता है. जिसके अनुसार विवाह से पहले एक-दूसरे को समझने का ज्यादा समय नहीं मिलता. इसीलिए जब साथ रहना पड़ता है तो एक-दूसरे के स्वभाव और अपेक्षाओं का पता चलता है.
यह ऑस्ट्रेलिया क्या लगभग हर देश और समाज के दंपत्तियों की परेशानी है जिसका हल बस आपसी समझ, धैर्य और विश्वास से ही निकाला जा सकता है.
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