निधी 2 घंटे तक अपने पति का इंतजार करती रही. दोनों की मैरेज एनिवर्सरी थी और निधी के पति ने ही प्लान बनाया था कि वह 5 बजे तक फ्री हो जाए फिर वे शाम एकसाथ बिताएंगे. लेकिन उसका पति 5 की बजाए शाम 7 बजे आया. निधी को बहुत गुस्सा आ रहा था लेकिन उसने कुछ नहीं कहा. दोनों एक साथ गए तो लेकिन पूरे रास्ते बात नहीं की. दोनों का मूड तो खराब रहा ही, साथ ही दिन के सभी प्लान भी पूरी तरह चौपट हो गए.
दूसरी तरह नेहा के ससुराल वाले उसकी हर बात में नुख्स निकालते रहते हैं. वह चाहे कुछ भी लर ले लेकिन उसके सास-ससुर कुछ ना कुछ कमी ढ़ूंढ ही लेते हैं. उसे गुस्सा तो आता है लेकिन वह कुछ कहती नहीं है.
यह समस्या सिर्फ निधी या नेहा की नहीं है क्योंकि हम में से बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें गुस्सा तो आता है लेकिन वह अपना गुस्सा बाहर नहीं निकाल पाते या निकालना नहीं चाहते बल्कि वह उस गुस्से में खुद को ही नुकसान पहुंचाने लगते हैं.
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इसका कारण यह है कि हमें बचपन से ही यह सिखाया जाता है कि गुस्सा करना सही नहीं है, हमें गुस्सा नहीं करना चाहिए, वगैरह-वगैरह. जबकि सिखाया यह जाना चाहिए कि अपनी भावनाओं को संतुलित रखे. हम यही सीखते आए है कि नाराजगी और गुस्सा अच्छी बात नहीं है. किसी के प्रति क्रोध रखना या किसी से नाराज होना सही नहीं है. इसके विपरीत सही बात यह है कि नाराज होना और गुस्सा करना नाकारत्मक नहीं बल्कि जरूरी और उपयुक्त भावनाएं हैं बशर्ते उनका प्रदर्शन संतुलित तरीके से किया जाए तो.
माता-पिता द्वारा दी गई सीख को बच्चे ग्रहण तो कर लेते हैं लेकिन इंसानी स्वभाव होने के नाते उन्हें गुस्सा आना तो स्वाभाविक है लेकिन जब यह गुस्सा हम किसी पर उतार नहीं पाते तो यह हमारे भीतर नकारात्मक भाव को जन्म देता है. ऐसा भाव जो हमें अंदर ही अंदर खाये जाता है और साथ ही हमारे संबंधों पर भी इसका घातक परिणाम पड़ता है.
स्व्गाभाविक सी बात है अगर हम किसी पर क्रोधित हैं और उसपर क्रोध ना उतारकर अंदर ही अंदर उसे बढ़ने का मौका दे तो एक दिन ऐसा आएगा जब हमारे अंदर पनपता वह क्रोध स्वयं हमारे लिए ही नुकसानदेह बन जाएगा. हमारी भावनाओं को अपने नियंत्रण में ले लेगा और साथ ही हमारे सभी क्रियाकलापों को प्रभावित करेगा.
अगर हमें किसी व्यक्ति का व्यवहार कष्ट पहुंचाता है तो हमें उसी समय उस व्यक्ति को बता देना चचाहिए क्योंकि उस समय बात सिर्फ उसी व्यवहार की होती है जबकि अगर ऐसा ना किया गया तो हमारे मन में उस व्यक्ति को लेकर कड़वाहट घुल जाती है, जिससे पार पाना कभी भार मुश्किल हो जाता है.
क्रोध जैसी नकारात्मक भावनाओं का कभी-कभार उठना बहुत जरूरी है क्योंकि यह हमें एहसास करवाती हैं कि कहां क्या गलत हो रहा है और गलती के कारणों के साथ उनके समाधान को खोजने के लिए भी प्रेरित करती हैं.
कभी कभार हालातों को बेहतर बनाने के लिए भी हमें नाराजगी या गुस्सा दिखाना पड़ता है. इसके अलावा अगर संतुलित तरीके से अपनी भावनाएं दर्शायी जाए तो यह हमें सिखाता है कि दूसरों के प्रति हमारा व्यवहार किस प्रकार का होना चाहिए.
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