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बेहतर पैरेंटिंग से दें बच्चों को उज्जवल भविष्य

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एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत भावेश दिल्ली के एक पॉश इलाके में अपने दो बच्चों और पत्नी सीमा के साथ रहता है. सीमा भी कामकाजी महिला है. बच्चों के भविष्य के लिये ये किसी भी तरह का कोई समझौता करना नहीं चाहते. काम के कारण पूरे सप्ताह ये बच्चों को पूरा वक्त तो नहीं दे पाते लेकिन सप्ताहांत ये पूरा वक्त अपने बच्चों को देकर इसकी कमी पूरी करते हैं. ये दोनों ही बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार करते हैं ताकि कभी भी इनकी अनुपस्थिति में इनके बच्चे असुरक्षित महसूस न करें और हर बात, परेशानी इनसे बेझिझक शेयर करें. पर पिछले दिनों भावेश के किसी रिश्तेदार ने उसे चेताया कि इस तरह वह बच्चों को सही परवरिश नहीं दे पाएगा. उनकी व्यस्तता उनके बच्चों को उनसे दूर कर उन्हें भटका सकती है. अब वह परेशान है कि किस तरह वह अपने बच्चों को अच्छी परवरिश दे सकता है. दोनों की नौकरी भी बच्चों के भविष्य के लिये जरूरी है, तो विकल्प के तौर पर वह करे तो क्या करे.


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ये किसी खास वर्ग की खास समस्या नहीं है. आज का लगभग हर युवा कामकाजी दंपत्ति इस समस्या से जूझ रहा है. पर यह कोई बड़ी समस्या नहीं है. कामकाजी युवा दंपत्ति भी अच्छे माता-पिता साबित हो सकते हैं, इसलिये अपने कामकाजी होने के कारण अपने बच्चों की परवरिश के लिये खुद को कमतर ना समझें और इसले लिए निम्न बातों का खयाल रखें:

खुद पर गर्व करें: अपने बच्चों की परवरिश के लिये खुद पर गर्व करना सीखें. कामकाजी होते हुए भी अपने बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभाते हैं. आप घर-बाहर दोनों ही जगहें संभालते हैं, खासकर महिलायें. अपनी इस क्षमता के लिये खुद पर गर्व करें. इससे अपनी परवरिश पर आत्मविश्वास आयेगा और आप बच्चों से खुलकर बात कर सकेंगे.

आपकी पैरेंटिंग में बेवजह कमियां निकालने वालों से दूर रहें: ऐसे लोग जो बेवजह बार-बार आपकी परवरिश में कमियां निकालते हैं, उनसे दूर ही रहने की कोशिश करें. ये बेवजह आपके आत्मविश्वास में कमी लाता है.

बच्चों से हमेशा संपर्क मे रहें: अंततः आपकी समस्या का हल बच्चे ही हैं. जितना भी वक्त मिले बच्चों से बात करें, उनके दोस्तों के बारे में पूछें, उनके दोस्तों से मिलें. समय-समय पर उनके स्कूल जायें, शिक्षकों से मिलें, उनकी प्रगति का हाल जानें.


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टीवी की बजाय परिवार के साथ समय बिताएं: छुट्टी के दिनों या खाली वक्त में टीवी पर अप्ना पसंदीदा प्रोग्राम देखने की बजाय बच्चों के साथ वक्त बितायें. छुट्टियों में बाहर घूमने जायें, खेलें, मस्ती करें.

समय का सुनियोजन करें: सारी परेशानी समय की कमी ही है. अपने समय को सुनियोजित रूप से खर्च करने की योजना बनायें. जरूरी नहीं कि 18 घंटे आप बच्चों के साथ रहें, लेकिन भावनात्मक रूप से आपका एक घंटे का साथ भी बच्चों की आपके करीब लाता है. किस तरह ऑफिस के दिनों में भी आप बच्चों के साथ ज्यादा वक्त बिता सकते हैं, सोचें और तय करें.


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आज शिक्षा से लेकर लाइफस्टाइल हर चीज़ मंहगी हो रही है. ऐसे में स्वयं और अपने बच्चों के भविष्य के लिए कामकाजी होना एक प्रकार से आज के युवा दंपत्तियों की जरूरत बन गई है. समयाभाव के कारण रिश्ते बिखरते हैं पर सबसे गहरा असर बच्चों पर पड़ता है. थोड़ी सी समझ और समय का सुनियोजन इसके नकारात्मक प्रभावों को कम कर सकती है. फिर आपके बच्चे गर्व के साथ कहेंगे, मेरे मम्मी-पापा दुनिया के बेस्ट मम्मी-पापा हैं!’’


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