26 साल की नेहा अपने गृहनगर से मुंबई नौकरी की तलाश में आती है. यहां उसकी दोस्ती अपनी एक दोस्त के फ्रेंड मोहित से हो जाती है और मुलाकातों के बढ़ने के कारण उन दोनों को एक-दूसरे से प्यार हो जाता है. मुंबई जैसे शहर में खर्च वहन करना मुश्किल होता है इसीलिए उन दोनों ने एक ही फ्लैट किराये पर लेकर लिव-इन के तहत रहना शुरू कर दिया. पहले तो सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन अचानक ही मोहित का व्यवहार नेहा के लिए बदलने लग गया. मोहित रोज रात को दोस्तों के साथ बाहर जाने लगा, नेहा की भावनाओं को अनदेखा करने लगा और जिस चीज से नेहा सबसे ज्यादा चिढ़ती थी, शराब, उसे वह अपने जीवन में शामिल कर चुका था. नेहा ने मोहित से शादी के लिए पूछा तो मोहित उसकी यह बात टाल गया. दोनों के बीच लड़ाई झगड़े बढ़ने लगे और धीरे-धीरे नेहा को समझ में आ गया कि मोहित वो इंसान नहीं है जिसका उसे इंतजार था. वह ना तो उसके साथ रहना चाहती थी और ना ही खुद को उससे अलग कर पा रही थी. उसे विश्वास नहीं हो पा रहा था कि उसके साथ यह सब घटित हुआ है. वह घुट-घुटकर जीने लगी थी. नेहा को एहसास होने लगा कि अगर कुछ समय के लिए वह अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रख लेती और मोहित के प्रपोजल को ना कहकर टाल देती तो आज वह इस मुकाम पर ना होती जहां उसे अपने प्यार और अपनी खुशियों में से किसी एक को चुनना पड़ता.
यह सिर्फ नेहा की नहीं बल्कि हर उस युवा की कहानी है जो संबंधों की गंभीरता को समझता है. कभी-कभार बड़ी आसानी से किसी पर विश्वास कर लिया जाता है. ऐसे में जो सच आपके सामने है उसे झुठलाकर आप अपने दिल पर भरोसा करने लगते हैं. जो बात आपका दिमाग मानने के लिए तैयार होता है दिल उसी के उलट अपनी राह तलाशता है. दिल और दिमाग के बीच इस भंवर में फंसकर एक तरफ तो आना ही पड़ता है. अगर आपका फैसला सही हुआ तो जिंदगी का सुकून आपके हाथ आ जाता है और अगर कभी कुछ गलत हो गया तो खुद को संभालने के सिवाय शायद किसी के पास कोई रास्ता नहीं बचता.
हर इंसान के जीवन में वो दौर जरूर आता है जब उसे सही और गलत के बीच किसी एक राह को चुनना पड़ता है और दांव पर होती है उसकी अपनी जिन्दगी. जीवन के किसी मोड़ पर आपको ऐसा कोई निर्णय ना लेना पड़े उसके लिए आपको खुद को पहले से ही तैयार करके चलना पड़ेगा. कभी खुद को मजबूत बनाकर आप अपने साथ होने वाली नकारात्मक घटनाओं को टाल सकते हैं. जरूरत है तो बस एक ‘ना’ कहने की.
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