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बलात्कार करने का ऐसा कारण आपने पहले कभी सुना नहीं होगा, पढ़िए एक रेपिस्ट की चौंकाने वाली दास्तां

जब कोर्ट की सुनवाई हुई तो बलात्कार-पीड़िता और बलात्कारी दोनों आमने-सामने थे. मुकदमा चला और भरी कचहरी में उसने रेप करने का जो कारण बताया वह किसी के लिए भी चौंकाने वाला था. मुजरिम अपना गुनाह तो कुबूल रहा था लेकिन गुनाह करने का जो कारण बताया वह किसी की भी सोच से एकदम परे है. उसने बताया कि उसने यह गुनाह नींद की अवस्था में किया. अब कोई रेप नींद में कैसे कर सकता है यह सोचने वाली बात है लेकिन उसका कारण यही था. बहरहाल इसकी सच्चाई का तो हमें नहीं पता लेकिन हां, नींद की बीमारियां आपसे क्या-क्या करवा सकती हैं आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते.



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नींद में चलने के बारे में तो आपने सुना होगा लेकिन शायद आप यह जानकर हैरान होंगे कि कई लोग नींद में उठकर खाते हैं, कई नींद में ही अपने पार्टनर के साथ लड़ाई करते हैं, और तो और नींद में मर्डर कर सकते हैं. ऐसी कई खतरनाक आदतें शायद आपको अपनी नींद के बारे में पता नहीं होंगी.

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नींद न आना, बहुत अधिक नींद आना, नींद में बड़बड़ाना-चिल्लाना, दांत किटकिटाना, चलना, खर्राटे लेना आदि आदतें स्लीपिंग डिसऑर्डर के अंतर्गत आती हैं. व्यक्ति विशेष के सामान्य स्वास्थ्य के लिए आदतें हानिकारक हो सकती हैं लेकिन सामाजिक परिप्रेक्ष्य में इन आदतों की कोई खास हानियां नहीं हैं. हालांकि स्लीपिंग डिसॉर्डर्स के ये कुछ सामान्य रूप हैं लेकिन इनके अलावे भी इसके कई अन्य रूप हैं जो न सिर्फ व्यक्ति विशेष के स्वास्थ्य बल्कि उसके आसपास के लोगों और समाज के लिए भी कई बार खतरा बन जाते हैं. नींद के ये खतरनाक रूप दो प्रकार के होते हैं: रैपिड आई मूवमेंट बिहैवियर डिसऑर्डर और पैरासोम्नियाज.


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रैपिड आई मूवमेंट – यह अधिकांशत: पुरुषों में देखा जाता है. सोने के 2 घंटे के अंदर यह डिसऑर्डर अपना रूप दिखा सकता है लेकिन अक्सर यह सुबह के समय देखा गया है. इसमें व्यक्ति हिंसक हो सकता है. नींद में उछ्लना, चिल्लाना, हाथ-पांव चलाना आदि इसमें आते हैं. कई बार व्यक्ति इसमें अत्याधिक हिंसक हो जाता है और अपने साथ सोए व्यक्ति को नुकसान पहुंचा सकता है. पहली बार यह डिसऑर्डर 1986 में पहचान में आया. इसका कोई ठोस कारण नहीं है. विशेषज्ञों के अनुसार कई बार यह बहुत अधिक ड्रग, अल्कोहल लेने के कारण भी हो सकता है, कई बार जेनेटिक हो सकता है लेकिन कई मामलों में इसका कोई भी कारण नहीं होता.


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पैरासोम्नियाज: इसमें कई प्रकार के डिसऑर्डर्स आते हैं जो निम्नलिखित हैं:


नॉन रैपिड आई मूवमेंट स्लीप (एनआरईएम): यह स्लो वेव स्लीप के नाम से भी जाना जाता है. यह साइकोलॉजिकल होता है और अर्धनिद्रा (आधी सोई, आधी जागी) की अवस्था में अक्सर इस डिसऑर्डर के मामले सामने आते हैं.


स्लीप रिलेटेड ईटिंग डिसऑर्डर्स(एसआरईडी): नींद के दौरान खाने की आदतें इसमें शामिल हैं. इसमें व्यक्ति नींद में किचन में रखा पका-अनपका कुछ भी खा सकता है. इसमें चाकू, पॉयजन आदि भी हो सकता है. इसलिए व्यक्ति की जान के लिए खतरा बन सकता है.



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दांत किटकिटाना (ब्रुक्सिज्म): अक्सर व्यक्ति अपनी इस आदत के बारे में नहीं जानता. दांत किटकिटाने की व्यक्ति की आदत जबड़ों में दर्द का कारण बन सकती है. इसके अलावे माइग्रेन, दांत टूटने, दांत झड़ने जैसी दिक्कतें भी हो सकती हैं.


स्लीप सेक्स या सेक्सोम्निया:व्यक्ति के अलावे उसके आसपास के लोगों के लिए भी यह एक बेहद खतरनाक डिसऑर्डर है. व्यक्ति नींद में सेक्सुअली बहुत अधिक हिंसक हो सकता है. यहां तक कि किसी का बलात्कार भी कर सकता है. पिछले साल अमेरिकी एक्टर साइमन मॉरिस को 15 साल की एक किशोरी से बलात्कार के आरोप में सजा हुई. साइमन पर लड़की को शराब पिलाकर उससे बलात्कार करने का दोषी पाया गया. साइमन ऐसा होने से इनकार नहीं करते लेकिन उनका पक्ष था कि यह सब नींद में हुआ और उसे कुछ भी याद नहीं है. अब ऐसा कैसे संभव है कि कोई किसी का बलात्कार करे और उसे याद न हो? साइमन और उसके वकील का कहना है कि वह स्लीपिंग डिसऑर्डर सेक्सोम्निया से पीड़ित है और नींद में उसने यह किया.


स्लीप टेरर: अक्सर नींद में डरकर दौड़ने के के कारण दीवार या किसी भारी चीज से टकराकर शरीर पर चोट, फ्रैक्चर आदि हो सकते हैं. हालांकि नींद टूटने पर व्यक्ति को यह याद नहीं रहता लेकिन यह बड़ी दुर्घटना का कारण बन सकता है.

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कंफ्यूजनल अराउजल: यह अक्सर बच्चों में देखा जाता है. अक्सर सोकर उठने के बाद वे अपने आसपास की चीजों और माहौल को पहचान नहीं पाते. ऐसे में अक्सर वे एक-दो मिनट के लिए आंखें खोलकर आसपास की चीजों को पहचानने की कोशिश करते हैं और फिर जाकर सो जाते हैं. हालांकि यह स्लीपिंग डिसऑर्डर का ही एक हिस्सा है लेकिन इसका कोई नुकसान नहीं है.


स्लीपिंग वॉकिंग (नींद में चलना): यह भी ज्यादातर बच्चों खासकर 11-12 साल की उम्र के बच्चों में देखा जाता है. नींद में चलना, बिस्तर से उठकर कहीं जाकर बैठ जाना, किसी के सामने न होने पर भी बेमतलब बोलना आदि आदतें इसमें आ सकती हैं. एडल्ट्स में भी कुछ संख्या में यह डिसऑर्डर आ सकता है लेकिन अक्सर अल्कोहल, ड्रग, दवाइयों के साइड इफेक्ट्स के कारण ऐसा हो सकता है. हालांकि इसमें व्यक्ति सामान्य जागे हुए व्यक्ति की तरह ही लगता है लेकिन उसके सभी काम नींद में हो रहे होते हैं. यहां तक कि वह आंखें खोले रहता है पर वह भी नींद में. नींद से जागने के बाद उसे कुछ भी याद नहीं रहता.



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क्या करें इससे छुटकारा पाने के लिए और इसके नुकसान से कैसे बचें?

हालांकि स्लीपिंग डिसऑर्डर्स के अभी तक कोई खास कारण पता नहीं चल पाए हैं इसलिए इसे पूरी तरह ठीक करने के लिए भी कोई उपचार नहीं है. लेकिन कुछ सोने से पहले की कुछ आदतों को बदलकर इसमें कुछ बिहैवियरल बदलाव लाए जाते हैं. जैसे:

  • सोने से पहले रिलैक्स हो जाएं और दिनभर की भागदौड़ और टेंशन का मिजाज हटाकर चैन से सोने जाएं.
  • रेगुलर एक्सरसाइज जरूर करें. यह शरीर के साथ दिमाग को भी स्वस्थ रखता है और इस डिसऑर्डर में कमी लाने में सहायक साबित हो सकता है.
  • सोने से पहले टीवी से दूरी बनाने की आदत डाल लें.
  • अल्कोहल, कैफीन, सिगरेट जैसी आदतें साउंड स्लीपिंग में खलल का काम करती हैं. इसलिए सोने से पहले शराब, चाय-कॉफी, सिगरेट जैसी आदतों को बाय-बाय कह दें.
  • सोने के लिए एक आरामदायक माहौल तैयार करें. आरामदायक बिस्तर, अरोमा का इस्तेमाल आदि जितने भी उपाय अच्छी नींद लाने के लिए कर सकते हैं, करें.

इसके साथ ही ध्यान रखें जिस भी व्यक्ति को किसी भी प्रकार का स्लीपिंग डिसऑर्डर हो उसके आसपास से चाकू, नुकीली चीजें या ऐसी नुकसान पहुंचाने वाली चीजों को सोने से पहले हटा दें.


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