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बिछिया और महिलाओं के गर्भाशय का क्या है संबंध

भारतीय महिलाएँ विशेष रूप से हिन्दू और मुसलमान औरतों में शादी के बाद बिछिया पहनने का रिवाज़ है. कई लोग इसे सिर्फ शादी का प्रतीक चिन्ह और परंपरा मानते हैं लेकिन इसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण है जिसके बारे में कम ही लोगों को पता है. कैसे और क्यों विज्ञान पर आधारित यह परंपरा आज भी  महिलाओं के बीच कायम है!


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वेदों में यह लिखा है कि दोनों पैरों में चाँदी की बिछिया पहनने से महिलाओं को आने वाली मासिक चक्र नियमित हो जाती है. इससे महिलाओं को गर्भ धारण में आसानी होती है.


  • चाँदी विद्युत की अच्छी संवाहक मानी जाती है. धरती से प्राप्त होने वाली ध्रुवीय उर्जा को यह अपने अंदर खींच पूरे शरीर तक पहुँचाती है जिससे महिलाएँ तरोताज़ा महसूस करती हैं.
  • पैरों के अँगूठे की तरफ से दूसरी अँगुली में एक विशेष नस होती है जो गर्भाशय से जुड़ी होती है. यह गर्भाशय को नियंत्रित करती है और रक्तचाप को संतुलित कर इसे स्वस्थ रखती है.
  • बिछिया के दबाव से रक्तचाप नियमित और नियंत्रित रहती है और गर्भाशय तक सही मात्रा में पहुँचती रहती है.
  • तनावग्रस्त जीवनशैली के कारण अधिकाँश महिलाओं का मासिक-चक्र अनियमित हो जाता है. ऐसी महिलाओं के लिए बिछिया पहनना अत्यंत लाभदायक होता है. बिछिया से पड़ने वाला दबाव मासिक-चक्र को नियमित करने में सहायक होता है.
  • बिछिया महिलाओं की प्रजनन अंग को भी स्वस्थ रखने में भी मदद करता है.
  • बिछिया महिलाओं के गर्भाधान में भी सहायक होती है.


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हमारे महान ग्रंथ रामायण में भी बिछिया का ज़िक्र है. जब माता सीता को खोजते हुए हनुमान लंका पहुँचते हैं तो सीता उन्हें अपने पैरों की बिछिया उतारकर देते हैं ताकि श्रीराम समझ सके कि वो अभी ज़िंदा हैं. वैदिक समय में भी महिलाएँ जिन आभूषणों को पहनने पर सोलह श्रृंगार से सजी मानी जाती थी उनमें से बिछिया एक है.


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