एवं स्वास्थ्य के लिये उपयोगी होती है. परन्तु जड़ी-बूटी का विशेष महत्व उनके औषधीय गुणों के कारण है. इसका इस्तेमाल औषधि के रूप में वर्षों से किया जाता रहा है, लेकिन वर्तमान में इस परंपरा में थोड़ा बदलाव आया है. विकास के नाम पर इस परंपरा को प्रभावित करने की भरपूर कोशिश की गई है. लेकिन हाल के कुछ वर्षों में जड़ी-बूटी पर शोध से लेकर चिकित्सीय इलाज के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय कार्य भी किए गए हैं.
जड़ी-बूटी पर शोध कार्य के लिए मुंबई का टाटा मेमोरियल अस्पताल आगे आया है. वनस्पतियों पर यह शोध पिपरिया (मध्य प्रदेश) के नजदीक पचमढ़ी के जंगलों में किया जा रहा है. पचमढ़ी के इस जंगल में वनस्पति और रोग नाशक जड़ी-बूटियों की भरमार है. आपको जानकार हैरानी होगी कि यहाँ 5 प्रकार की वनस्पति ऐसी हैं जो दुनिया के किसी भी स्थान पर नहीं मिलती. यह वनस्पति केवल पचमढ़ी के पहाड़ों पर ही मिलती है. इसके अलावा यहाँ लगभग 300 दुर्लभ जड़ी बूटियाँ भी पचमढ़ी के जंगलों में हैं.
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जड़ी-बूटी से चिकित्सा एक पारम्परिक चिकित्सा पद्धति के साथ ‘लोक चिकित्सा पद्धति’ भी है क्योंकि जन सामान्य तक जड़ी-बूटी की उपलब्धता होती है. इस चिकित्सीय पद्धति में पौधों एवं उनके रसादि का चिकित्सा के लिये उपयोग किया जाता है. इन जड़ी बूटियों में गंभीर रोगों से लड़ने की क्षमता होती है. विशेषज्ञों के अनुसार हिल स्टेशन पचमढ़ी के पहाड़ों पर जैव विविधता का भंडार है.
शोधकर्ताओं का कहना है कि हाल में हुए एक शोध से पता चला है कि पचमढ़ी में पाई जाने वाली बूटी में सेलाजिनेला कैंसर और पथरी जैसे बीमारियों से लड़ने की क्षमता है. यह बूटी संजीवनी के नाम से ज्यादा प्रचलित है. पिपरिया पीजी कॉलेज के वनस्पति विभाग के प्रोफेसर डॉ.रवि उपाध्याय ने बताया कि पचमढ़ी के पहाड़ों पर कुल 1439 प्रकार की वनस्पतियां हैं. यहां की संजीवनी बूटी पर मुंबई के टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल के विशेषज्ञों के साथ शोध किया गया है.
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शोधकर्ताओं का कहना है कि इस वनस्पति में ब्रेस्ट और आंत के कैंसर से लड़ने की क्षमता है. इस पर गहन शोध के बाद रिपोर्ट सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट को भेजी गई है. इस बूटी से दवाएं बनाने का काम सेंट्रल ड्रग इंस्टीट्यूट परीक्षण के बाद होगा. यदि जांच के बाद सेंट्रल ड्रग इंस्टीट्यूट स्वीकृति देती है तो कैंसर के इलाज़ में भारत का यह एक बड़ा कदम माना जाएगा.Next…
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