कभी आसमान की तरफ उम्मीद से भरी नजरें उठाना तो कभी सरकार की तरफ अपनी बदहाली का आईना दिखाकर मदद की गुहार. सुनने में ये बातें कुछ अजीब लगे लेकिन भारत को कथित रूप से कृषि प्रधान माने जाने वाले देश की कुछ ऐसी ही कहानी है. यहां मेक इन इंडिया अभियान की भीड़ में अपना भारत जाने कहां खो गया है. अगर आप किसानों की व्यथा के बारे में किसी सरकार के किसी आला अधिकारी से बात करेंगे तो आपको लाख आश्वासनों से ज्यादा शायद ही कुछ मिल पाए. वहीं दूसरी ओर किसानों की बात करें तो उन्होंने किसी से कुछ कहना ही छोड़ दिया है. शायद अधिकतर किसान इस पुरानी कहावत को अमल में ला चुके हैं कि ‘भगवान भी उनकी मदद करते हैं जो अपने लिए रास्ते खुद बनाते हैं.’ इसका जीवंत उदाहरण इन दिनों अमेजन और ई- बाय कॉमर्स वेबसाइट पर देखने को मिल रहा है.
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जहां किसानों ने गाय के गोबर से बने उपलों को बेचकर अपनी आजीविका चलाने का एक नया रास्ता ढूंढ निकाला है. जी हां, आपको ये बात सुनने में थोड़ी अटपटी जरूर लग सकती है, लेकिन इन दिनों देश-विदेश के ग्राहक ऑनलाइन उपलों की फोटो देखकर इन्हें खरीदने में दिलचस्पी दिखा रहे हैं. कृषक समुदाय के इस अनोखे कदम ने हमारे देश के लोगों को बेशक हैरान कर दिया हो लेकिन विदेशों में रहने वाले प्रवासी भारतीयों और अन्य देशों के लोगों के लिए एक ऐसी सुविधा है जो उन्हें अपने देश में नहीं मिल सकती. साइट पर आने वाले हर एक यूजर्स का खास ख्याल रखने के उद्देश्य से तरह-तरह के उपलों की फोटो के साथ, फ्री होम डिलीवरी, विभिन्न रेट लिस्ट और दिलचस्प उपहार देने की स्कीम भी है. दिल्ली के पॉश इलाके में रहने वाले कपूर दंपत्ति कहते हैं कि ‘हमारे यहां गृह प्रवेश पूजा थी.
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पूजा का सारा सामान खरीदना आसान था लेकिन हवन के लिए पंडित ने उपले भी लाने को कहा था, जिसके लिए मुझे दिल्ली के किसी ग्रामीण इलाके या दिल्ली से बाहर जाना पड़ता. मुझे किसी ने बताया कि ऑनलाइन उपले का जुगाड़ कर सकते हैं फिर तो मैंने झट से ऑर्डर कर दिया.’ मशहूर कॉमर्स वेबसाइट शॉपक्लू की मुख्य अधिकारी राधिका अग्रवाल बताती हैं ‘इन उपलों की सबसे ज्यादा डिमांड दीवाली और गोवर्धन पूजा पर होती है. क्योंकि पूजा में उपलों को शुद्ध माना जाता है. इसमें कुछ गलत भी नहीं है अगर किसान इस तरह से अपनी मदद कर भी रहे हैं तो किसी को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए.’…Next
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