‘भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है ‘आत्मा अजर-अमर है जो केवल शरीर बदलती है. आत्मा को मारा नहीं जा सकता. जिस प्रकार पुराने कपड़ों को उतारकर मनुष्य नए कपड़ों को धारण करता है उसी तरह आत्मा भी एक समयावधि के बाद एक नया शरीर धारण करती है.’ लेकिन नए शरीर को धारण करने का अर्थ हमेशा इंसान के शरीर से नहीं है. बल्कि कर्मों और प्रकृति के अनुसार आत्मा को किसी भी योनि का शरीर प्राप्त हो सकता है.
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जीवन के बाद आत्मा खुद शरीर नहीं चुन सकती बल्कि नियति उसे किसी भी जीव के शरीर में प्रवेश करने का आदेश देती है. आत्मा का खुद को मिलने वाले नए शरीर पर बेशक वश न चलता हो लेकिन किसी इंसान की मौत हो जाने पर उसकी आत्मा कितने दिनों में दूसरा शरीर ग्रहण करेगी, ये सब बातें हिन्दू धर्म के कई वेद और पुराणों में वर्णित की गई है. आइए हम आपको बताते है आत्मा को दूसरा शरीर मिलने की अवधि से जुड़ा हुआ राज. वेदों के तत्वज्ञान को वेदांत कहते हैं. गीता उपनिषदों का सारतत्व है. इसमें वर्णित कथा के अनुसार किसी व्यक्ति की मौत होने पर आमतौर पर आत्मा तत्काल ही दूसरा शरीर धारण कर लेती है. लेकिन मनुष्य रूप में जीवन में किए गए विभिन्न कार्यों के आधार पर कभी-कभी आत्मा को दूसरा शरीर लेने के लिए लम्बी यात्रा करनी पड़ती है.
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जिनमें कुछ आत्माएं 3 दिनों के भीतर दूसरा शरीर धारण करती है इसलिए कई लोगों द्वारा इस मान्यता को मानते हुए ‘तीजा’ किया जाता है. कुछ आत्माएं 10 दिनों या 13 दिनों में दूसरा शरीर धारण करती है इसलिए 10वां और 13वीं मनाई जाती है. वहीं कुछ इंसान ऐसे भी होते हैं जिनकी मृत्यु दर्दनाक, समय से पूर्व या किसी इच्छा के अधूरे रह जाने के कारण से उनकी आत्माएं दूसरे शरीर में न जाने का हठ करने लगती है. इसलिए उन्हें दूसरा शरीर प्राप्त करने के लिए 37 या 40 दिन लगते हैं. वहीं अधिकतर लोग अपने किसी प्रियजन की मौत के एक साल बाद उनकी बरसी भी करते हैं. इसका अर्थ यह होता है कि अगर किसी कारणवश उनकी आत्मा प्रेत योनि में चली गई हो, तो उनकी आत्मा को उसी योनि में शांति मिले और वापस से उनकी आत्मा को यह कष्ट न उठाना पड़े…Next
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