“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:” अर्थात जहाँ स्त्रियों को पूजा जाता है वहाँ देवता स्वयं निवास करते हैं, कुछ ऐसा ही उल्लेख मिलता है हमारे भारतीय शास्त्रों में लेकिन मान सम्मान का प्रतीक माने जाने वाले स्त्री आज के समय में खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर पाती और सुखद जीवन की अभिलाषा में वह उम्र भर संघर्षरत रहती है.
एक तरफ जहाँ महिलाएं अपने अस्तित्व की तलाश में परिस्तिथियों से जूँझ रही हैं वही कुछ देशों में उनकी दशा-स्तिथि पुरुषों के सामान ही बेहतर है और इसका श्रेय जाता उन देशों की व्यवस्था प्रणाली को, जो नारी के सम्मान और प्रतिष्ठा हेतु निरन्तर प्रयासरत हैं. इनमे से एक देश है न्यूज़ीलैंड जो आर्थिक रूप से सृमद्ध होने के साथ सामाजिक मामलों में भी अग्रणी है.
कुछ अर्थशास्त्रियों ने महिलाओं की कार्यशैली के ऊपर रिसर्च कर निर्णय दिया कि न्यूज़ीलैंड वह देश है जहाँ पर महिलाओं को भी पुरुषों के समान कार्य के अवसर मिलते हैं मतलब किसी भी कार्यक्षेत्र में पुरुष और महिला समान मात्रा में काम करते हैं जब इस तथ्य की सत्यता के लिए न्यूज़ीलैंड की 100 सबसे बड़ी ‘स्टॉक एक्सचेंज कंपनियों’ के डायरेक्टर्स का रिकॉर्ड बनाया गया तो पता लगा कि उनमे आधे से अधिक कंपनियों में महिलायें डायरेक्टर के पद पर कार्य कर रही हैं.
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2011 में जब एक लॉबी ग्रुप के हेड ने बताया कि ‘महिलाओं द्वारा महीने में बीमारी और परिवार की देखभाल के लिए जो छुट्टी ली जाती है, केवल उसके कारण महिलाओं का वेतन पुरुषों की तुलना में कम हो जाता है, अन्यथा महिलायें कार्यक्षमता और योग्यता दोनों में पुरुषों के बराबर हैं.
वहीँ ‘साउथ-कोरिया’ और ‘जापान’ ऐसे देश हैं जहाँ मुश्किल से ही कोई महिला किसी उच्च पद पर काम करती हुई पायी जाती है. इसी दिशा में महिलाओं के वजूद और अधिकार की लड़ाई लड़ते हुए , अमेरिका की कुछ सामाजिक पार्टियों ने 8 मार्च 1909 को महिलाओं के गौरव का दिन घोषित करते हुए इसको अंतराष्ट्रीय महिला दिवस का नाम दिया…Next
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