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आज हैं 25 हजार करोड़ के मालिक…कभी नहीं थे खाने के लिए पैसे, अंग्रेजी से लगता था डर

के संस्थापक विजय शेखर. दिल्ली से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद विजय ने कभी नहीं सोचा था कि वो इतनी बड़ी संस्था के मालिक बनेंगे. शेखर शर्मा इनती ऊंचाईयों कैसे पहुंचे? जानें इनकी पूरी कितनी.


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अंग्रेजी की वजह से पढ़ने में आई दिक्कतें

यूपी के छोटे से शहर अलीगढ़ से आए विजय को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ा. उनकी शुरुआती पढ़ाई एक हिंदी स्कूल में हुई थी. शुरुआत में शेखर को अंंग्रेजी बोलने और समझने में दिक्क्त होती थी, ऐसे में दिल्ली कॉलेज और इंजींंनियरिंग (डीसीई) में उन्होंने दाखिला तो ले लिया, लेकिन पढ़ाई उनके समझ से दूर थी. कॉलेज में जब उनसे अंग्रेजी में सवाल पूछा जाता, तो वो कुछ नहीं कह पाते, जिस वजह से लोग उनका मजाक उड़ाते थे.



कुछ दोस्तों ने अंग्रेजी में की मदद

जहां एक तरफ अंग्रेजी में हाथ तंग होने की वजह से शेखर ने कॉलेज से दूरी बना ली, वहीं उनके कुछ दोस्त उनकी अंग्रेजी बोलने और समझने में मदद करने लगे. शेखर ने बताया कि उनके हालात ऐसे हो गए थे कि वो कई बार परीक्षा में फेल हो गए. लेकिन दोस्तों की मदद और अपनी मेहनत की वजह से उन्होंने अंग्रेजी में खुद को काबिल कर लिया.



अमेरिका में करने लगे नौकरी

अंग्रेजी अच्छी हो गई और शेखर को आखिरकार एक अमेरिकी इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी में काम मिल गया. शेखर भारत छोड़कर अमेरिका चले गए और वहां अपनी दुनिया बसा ली. लेकिन उनका खुद का सपना अभी अधूरा था. अपनी कंपनी खोलेने का सपना लिये शेखर का कुछ सालों बाद नौकरी से मन भर गया और एक दिन वो बिना बताए कंपनी छोड़कर चल दिए.


vijay sekhar

खुद की खोली कंपनी

शेखर के पास अनुभव था और कुछ पैसे थे, उन्होंने One97 कंपनी शुरू की. कुछ दिनों तक वो कंपनी अच्छी चली, लेकिन साल भर के भीतर कंपनी की हालत खराब होने लगी. कंपनी को बचाने के लिए शेखर उधार लेने लगे, लेकिन उधारी जब 8 लाख तक पहुंच जाए तो वो उधारी नहीं होती.


2005 मे पलटी किस्मत

इंटरनेट ने जैसे-जैसे पांव पसराना शुरू किया और लोगोंं ने मोबाईल के जरिए काम शुरू किया, तो शेखर की कंपनी को फायदा होने लगा और आखिरकार 2005 में कंपनी को फायदा पहुंचा. धीरे-धीरे कंपनी ने खुद को दोबोरा खड़ा किया और तब शेखर ने कुछ और सपनों को पर देने की सोची.



कैसे खड़ी की पेटीएम?

पेटीएम के शुरू होने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. किराने का सामान या ऑटोवाले को पैसे देते वक्त छुट्टे की दिक्कत ने शेखर को पेटीएम जैसी कंपनी बनाने के लिए प्रेरित किया. 2010 में पेटीएम का ख्याल शेखर के दिमाग में आया और उन्होंंने इसकी स्थापना कर दी. आज नोटबंदी के दौर में पेटीएम सभी का सहारा बन गया है.



पेटीएम का टर्नओवर 25 हजार करोड़

पेटीएम की कीमत आज 25 हजार करोड़ से ज्यादा है. कई हजार लोग इस कंपनी में काम करते हैं. विजय शेखर शर्मा की मेहनत और हार ना मानने का जज्बा ही उन्हें इस मुकाम पर ले आई…Next


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